अभी ठहरो
अभी से इस तअ'ल्लुक़ का कोई उन्वान मत सोचो
अभी तो इस कहानी में
मोहब्बत के अधूरे बाब की तकमील होने तक
नज़र की धूप में रक्खे हुए ख़्वाबों के
सारे ज़ाइक़े तब्दील होने तक
बहुत से मोड़ आने हैं
मुझे उन से गुज़रने दो
ज़रा महसूस करने दो
कि मेरे पाँव के नीचे ज़मीं ने रंग बदला है
मिरे लहजे में अपना किस तरह आहंग बदला है
मुझे थोड़ा सँभलने दो अभी ठहरो
अभी ठहरो कि वो ख़ुश-बख़्त साअ'त भी अभी
मुझ तक नहीं पहुँची
जो दिल के आईने को वहम की अंधी गली से
एतिबार-ए-ज़ात की सरहद पे लाती है
उसे रस्ता बताती है
अभी उन रास्तों पर तुम मुझे कुछ देर चलने दो
अभी ठहरो
कोई ख़्वाहिश उमीद-ओ-बीम के माबैन अब भी
साँस लेती है
उसे इस कर्ब से आज़ाद करने दो
वो सारे ख़्वाब
जिन को देखने का क़र्ज़ में लूटा नहीं पाई
मुझे उन के लिए ता'बीर का सफ़हा पलटने दो
अभी ठहरो
किसी बीते हुए मौसम के बख़्शे ज़ख़्म
अब भी आँख की पुतली में रौशन हैं
ज़रा ये ज़ख़्म भरने दो
मसीहाई तुम्हारी
रूह की पाताल तक कैसे पहुँचती है
मुझे अंदाज़ा करने दो
अभी ठहरो
अभी से इस तअ'ल्लुक़ का
कोई उन्वान मत सोचो
नज़्म
मोहलत
नाहीद क़मर