EN اردو
मोहब्बत का एक साल | शाही शायरी
mohabbat ka ek sal

नज़्म

मोहब्बत का एक साल

अय्यूब ख़ावर

;

इस इक साल में
कितने साल गुज़ारेंगे हम

हर इक दिन, इक साल मिसाल
हर इक दिन की सुब्ह का सूरज हर्फ़-ए-सवाल

हर इक दिन की झुलसी हुई और भीगी हुई दोपहर ज़वाल
हर इक दिन की, हर इक शाम शाम-ए-जमाल

हर इक शाम की रात कमाल
वस्ल के हर इक लम्हे में हैं जैसे सदियाँ घुली हुई

हिज्र के हर लम्हे में जैसे
हल्की आँच पे रेत की धड़याँ भुनी हुई

सीने में हर धड़कन, जैसे
चोलसतानी ऊँट की गर्दन में हों टलियाँ बंधी हुई

आँखों की दो झीलों में हैं
कँवल मलाल के खिले हुए

होंट आपस में मिले हुए
हिचकियों में हैं बंधे हुए

साँस की फाँस है साले सूरज के सीने में गड़ी हुई
चाँद हरामुद्दहर, समुंदर गोठ के अंदर

बर्फ़ों बर्फ़ों धँसा हुआ
दिन और रात भी

नंग-धड़ंगे, इक दूजे से लगे हुए
उन के पाँव-तले मिट्टी है

और न सर पर टोपी है
वक़्त आने वाले बरसों के ख़ला में चलता जाता है

ये इक साल मोहब्बत का
थमे हुए दिन रात के नंगे-पन पर जमता जाता है