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मिरे लिए कौन सोचता है | शाही शायरी
mere liye kaun sochta hai

नज़्म

मिरे लिए कौन सोचता है

मोहसिन नक़वी

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मिरे लिए कौन सोचता है
जुदा जुदा हैं मिरे क़बीले के लोग सारे

जुदा जुदा सब की सूरतें हैं
सभी को अपनी अना के अंधे कुएँ की तह में पड़े हुए

ख़्वाहिशों के पिंजर
हवस के टुकड़े

हवास रेज़े
हिरास कंकर तलाशना हैं

सभी को अपने बदन की शह-ए-रग में
क़तरा क़तरा लहू का लावा उंडेलना है

सभी को गुज़रे दिनों के दरिया का दुख
विरासत में झेलना है

मिरे लिए कौन सोचता है
सभी की अपनी ज़रूरतें हैं

मिरी रगें छिलती जराहत को कौन बख़्शे
शिफ़ा की शबनम

मिरी उदासी को कौन बहलाए
किसी को फ़ुर्सत है मुझ से पूछे

कि मेरी आँखें गुलाब क्यूँ हैं
मिरी मशक़्क़त की शाख़-ए-उरियाँ पर

साज़िशों के अज़ाब क्यूँ हैं
मिरी हथेली पे ख़्वाब क्यूँ हैं

मिरे सफ़र में सराब क्यूँ हैं
मिरे लिए कौन सोचता है

सभी के दिल में कुदूरतें हैं