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मेरा सफ़र क़दम क़दम | शाही शायरी
mera safar qadam qadam

नज़्म

मेरा सफ़र क़दम क़दम

मीर यासीन अली ख़ाँ

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निकला हूँ ख़ुद को ढूँडने इस का मगर है मुझ को ग़म
राह-ए-जुनूँ दराज़ है मेरा सफ़र क़दम क़दम

मुझ को ख़बर नहीं कि याँ कितने लुटे हैं कारवाँ
कितनी गिरी हैं बिजलियाँ कितने जले हैं आशियाँ

चाक है पर्दा-ए-वजूद फिर भी कोई मिरा नहीं
कौन है जिस के वास्ते हुक्म-ए-सज़ा जज़ा नहीं

आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक में मेरा ज़ुहूर भी हिजाब
हश्र में सब के सामने मेरा अमल है बे-नक़ाब

मेरी तमाम ज़िंदगी मा'रका-हाए-ख़ैर-ओ-शर
मेरी निगाह-ए-अर्श पर मैं कफ़-ए-ख़ाक-ए-ओ-ख़ुद-निगर

मेरे लिए हैं दो जहाँ मैं हूँ ख़ुदा के वास्ते
मेरा वजूद आइना अहल-ए-सफ़ा के वास्ते

जिस में कि ख़ूब-ओ-ज़िश्त का मद्द-ओ-जज़र है साफ़ साफ़
मंज़र-ए-दोज़ख़-ओ-बहिश्त पेश-ए-नज़र है साफ़ साफ़

राह-ए-बद-ओ-राह-ए-नजात हैं मेरे इख़्तियार में
ग़म हैं मगर ये रास्ते रंग-ब-रंग ग़ुबार में

हिर्स-ओ-हवा की ढेर पर अपने क़दम जमा के रख
तेग़-ए-ज़माना तेज़ है सर को बचा बचा के रख

कार-गह-ए-हयात में रख ले ख़ुद अपनी आबरू
तेरा मक़ाम-ए-बंदगी काम है तेरा आरज़ू

ख़ुद दिल-ओ-जिगर से कर जज़्ब-ए-दरूँ की परवरिश
करते रहें ज़मीर को इश्क़ के नग़्मे मुर्तइश

सुन ले मिरे 'नदीम' सुन 'इक़बाल' के था दर्द-ए-लब
इश्क़-ए-तमाम-ए-मुस्तफ़ा अक़्ल-ए-तमाम बू-लहब

हासिल-ए-इश्क़-ए-मुस्तफ़ा उन से निज़ाम-ए-काएनात
उन के बग़ैर शरअ'-ओ-दीन बुत-कदा-ए-तसव्वुरात

अपनी ख़ुदी की ओट से जल्वा-ए-बे-हिजाब देख
क़ल्ब-ओ-नज़र को पाक रख यार को बे-नक़ाब देख