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मश्वरों से भरी अलमारी | शाही शायरी
mashwaron se bhari almari

नज़्म

मश्वरों से भरी अलमारी

शौकत आबिदी

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मेरे दोस्त, मेरे ख़ैर-ख़्वाह
मेरे इस्लाह की ग़रज़ से

वक़तन-फ़वक़तन अपने क़ीमती मश्वरों से नवाज़ते रहते हैं
वो ये काम पूरी ज़िम्मेदारी से

रज़ाकाराना बुनियाद पर करते हैं
अगर मैं उन के मश्वरों पर अमल शुरूअ कर दूँ

तो मुमकिन है ये लोग
मुझे मशवरे देने से बाज़ आ जाएँ

मैं अपने ख़ैर-ख़्वाहों के दिए हुए
मश्वरों के लिफ़ाफ़े

एक अलमारी में डालता रहता हूँ
जो भर चुकी है

मैं जानता हूँ
मशवरे देना मेरे ख़ैर-ख़्वाहों का हक़ है

और उन पर अमल न करना मेरी कोताही
मश्वरों का अम्बार अब इस क़दर बढ़ चुका है

कि मुझे एक नई अलमारी ख़रीदना होगी
या फिर अपने ख़ैर-ख़्वाहों के क़ीमती मश्वरों पर

अमल का आग़ाज़
मेरे दोस्त मेरे ख़ैर-ख़्वाह

मेरी इस्लाह की ग़रज़ से
वक़तन-फ़वक़तन मुझे अपने क़ीमती मश्वरों से नवाज़ते रहते हैं

लेकिन कोई मेरी मदद करने को तयार नहीं