किसी की याद सताती है रात दिन तुम को
किसी के प्यार से मजबूर हो गई हो तुम
तुम्हारा दर्द मुझे भी उदास रखता है
क़रीब आ के बहुत दूर हो गई हो तुम
तुम्हारी आँखें सदा सोगवार रहती हैं
तुम्हारे होंट तरसते हैं मुस्कुराने को
तुम्हारी रूह को तन्हाइयाँ अता कर के
ये सोचती हो कि क्या मिल गया ज़माने को
गिला करो न ज़माने की सर्द-मेहरी का
कि इस ख़ता में ज़माने का कुछ क़ुसूर नहीं
तुम्हारे दिल ने उसे मुंतख़ब किया कि जिसे
तुम्हारे ग़म को समझने का भी शुऊर नहीं
तुम उस की याद भुला दो कि बेवफ़ा है वो
हर एक दिल नहीं होता तुम्हारे दिल की तरह
तुम अपने प्यार को रुस्वा करो न रो रो कर
तुम्हारा प्यार मुक़द्दस है बाइबल की तरह
अब उस के वास्ते ख़ुद को न यूँ तबाह करो
अब इम्तिहाँ की तमन्ना से फ़ाएदा क्या है
वो आसमाँ कि जिसे तुम न छू सकोगी कभी
उस आसमाँ की तमन्ना से फ़ाएदा क्या है
नज़्म
मशवरा
कफ़ील आज़र अमरोहवी