क़त्ल-गाह की रौनक़
हस्ब-ए-हाल रखनी है
ग़म बहाल रखना है
जाँ सँभाल रखनी है
ज़ोर-ए-बाज़ू-ए-क़ातिल
इंतिहा का रखना है
दशना तेज़ रखना है
और बला का रखना है
और क्या मिरे क़ातिल
इंतिज़ाम बाक़ी है
कोई बात होनी है
कोई काम बाक़ी है
वक़्त पर नज़र रखना
वक़्त एक जादा है
हाँ बता मिरे क़ातिल
तेरा क्या इरादा है
वक़्त कम रहा बाक़ी
या अभी ज़ियादा है
मैं तो क़त्ल होने तक
मुस्कुराए जाउँगा
नज़्म
मक़्तल में मुकालिमा
पीरज़ादा क़ासीम