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मजीद-अमजद के लिए | शाही शायरी
majid-amjad ke liye

नज़्म

मजीद-अमजद के लिए

अबरार अहमद

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तुम आते हो दूर देस से
दूर देस से आने वालों पर

हर कोई हँसता है
दिल डरता है

जब सर्द हवा के आँचल में
मुँह ढाँप परिंदे सोते हैं

जब शाम ढले दीवारों पर
कुछ साए गड-मड होते हैं

कुछ शक्लें रंग जमाती हैं
उजड़ी उजड़ी दहलीज़ों पर

ख़ामोशी दस्तक देती है
और बंद किवाड़ों की तन्हाई

हर-सू ख़ाक उड़ाती है
इस लम्हे कोई

दिल में करवट लेता है
जब वक़्त के काहिल माथे पर

नामों की बूँदें गिरती हैं
मिट्टी में ख़ुश्बू घोलती हैं

हर फूल के दिल में
आती रुत का धड़का जागने लगता है

तब ध्यान में जाने किस बस्ती से
धीमे धीमे क़दमों की आवाज़ सुनाई देती है

तुम आते हो
तुम आओगे

दिल डरता है