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मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी | शाही शायरी
maine chand aur sitaron ki tamanna ki thi

नज़्म

मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी

साहिर लुधियानवी

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मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी
मुझ को रातों की सियाही के सिवा कुछ न मिला

मैं वो नग़्मा हूँ जिसे प्यार की महफ़िल न मिली
वो मुसाफ़िर हूँ जिसे कोई भी मंज़िल न मिली

ज़ख़्म पाए हैं बहारों की तमन्ना की थी
मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी

किसी गेसू किसी आँचल का सहारा भी नहीं
रास्ते में कोई धुँदला सा सितारा भी नहीं

मेरी नज़रों ने नज़ारों की तमन्ना की थी
मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी

दिल में नाकाम उमीदों के बसेरे पाए
रौशनी लेने को निकला तो अँधेरे पाए

रंग और नूर के धारों की तमन्ना की थी
मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी

मेरी राहों से जुदा हो गईं राहें उन की
आज बदली नज़र आती हैं निगाहें उन की

जिन से इस दिल ने सहारों की तमन्ना की थी
मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी

प्यार माँगा तो सिसकते हुए अरमान मिले
चैन चाहा तो उमडते हुए तूफ़ान मिले

डूबते दिल ने किनारों की तमन्ना की थी
मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी