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मैं नशे में हूँ | शाही शायरी
main nashe mein hun

नज़्म

मैं नशे में हूँ

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

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हड़ताल करने से न टलो मैं नशे में हूँ
ऐ ग़ैर-मुलकियों की कलो मैं नशे में हूँ

मेरा जुलूस ले के चलो मैं नशे में हूँ
फिर ख़ाक सब के मुँह पे मलो मैं नशे में हूँ

''यारो मुझे माफ़ रखो मैं नशे में हूँ''
''अब दो तो जाम ख़ाली ही दो मैं नशे में हूँ''

घोड़े पे मैं सवार हूँ सुनते हो पैदलो
मुझ पर सवार नश्शा है मैं उस के हूँ जिलौ

जलसों में जब भी जाओ मुझे साथ ले चलो
और ख़ाली-ख़ोली नारों से फिर मूँग भी दलो

''एक एक फ़र्त-ए-दौर में यूँही मुझे भी दो''
''जाम-ए-शराब पुर न करो मैं नशे में हूँ''

इस क़ौम की फ़लाह है जाम-ओ-सुबू के बेच
तुम इंतिख़ाब जा के लड़ो हाव-हू के बीच

दुश्नाम और बलवों के और दू-ब-दू के बीच
जैसे कि कोई बैठा हो बज़्म-ए-अदू के बीच

''मस्ती से दरहमी है मिरी गुफ़्तुगू के बीच''
''जो चाहो तुम भी मुझ को कहो मैं नशे में हूँ''

मैं रहनुमा-ए-क़ौम हूँ, ये हो चुका है तय
खाता रहा हूँ गालियाँ माज़ी में पय-ब-पय

गुज़री है उमर जेल में लेकिन ये ता-ब-कै
मेरा जुलूस ले के मिरी क़ौम जब चले

''या हाथों-हाथ लो मुझे मानिंद-ए-जाम-ए-मय''
''या थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ''

मुझ पर भी वक़्त आ के पड़े हैं यहाँ कड़े
ये वो ज़मीं है जिस पे गिरे हैं बड़े बड़े

तुम क्यूँ उखाड़ते हो वो मुर्दे जो हैं गड़े
देखे नहीं हैं तुम ने जो चिकने थे वो घड़े

''म'अज़ूर हूँ जो पाँव मिरा बे-तरह पड़े''
''तुम सरगिराँ तो मुझ से न हो मैं नशे में हूँ''

ये बात अक़्ल में भी समाती नहीं है कुछ
शोहरत तो मुफ़्त वोट दिलाती नहीं है कुछ

ईमान-दारी काम बनाती नहीं है कुछ
लठ की ज़बान भी मुझे आती नहीं है कुछ

भागी तुम्हारी राय तो जाती नहीं है कुछ
''चलता हूँ मैं भी, टुक तो रहो, मैं नशे में हूँ

आया है वक़्त ऐसा जो पहले न था कभी
दुश्वार रास्ता भी है मंज़िल है दूर अभी

पब्लिक से झूटे वादे भी कर लेते हैं सभी
मैं नय भी इख़्तियार की ये पॉलीसी जभी

''नाज़ुक-मिज़ाज आप क़यामत हैं 'मीर'-जी''
''जूँ शीशा मेरे मुँह न लगो मैं नशे में हूँ''

बदमस्त हो गए हो इलेक्शन में 'जाफ़री'
सर में नशे के साथ है साैदा-ए-रहबरी

तुम कस जगह के पंच हो क्या है बिरादरी
क्यूँ ढूँडते हो मुल्क में जो वोट हो फ़्री

तुम होश में नहीं हो तो है बात दूसरी
ये कह के घर में बैठ रहो मैं नशे में हूँ