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मैं नहीं तो क्या | शाही शायरी
main nahin to kya

नज़्म

मैं नहीं तो क्या

साहिर लुधियानवी

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मिरे लिए ये तकल्लुफ़ ये दुख ये हसरत क्यूँ
मिरी निगाह-ए-तलब आख़िरी निगाह न थी

हयात ज़ार-ए-जहाँ की तवील राहों में
हज़ार दीदा-ए-हैराँ फ़ुसूँ बिखेरेंगे

हज़ार चश्म-ए-तमन्ना बनेगी दस्त-ए-सवाल
निकल के ख़ल्वत-ए-ग़म से नज़र उठाओ तो

वही शफ़क़ है वही ज़ौ है मैं नहीं तो क्या
मिरे बग़ैर भी तुम कामयाब-ए-इशरत थीं

मिरे बग़ैर भी आबाद थे नशात-कदे
मिरे बग़ैर भी तुम ने दिए जलाए हैं

मिरे बग़ैर भी देखा है ज़ुल्मतों का नुज़ूल
मिरे न होने से उम्मीद का ज़ियाँ क्यूँ हो

बढ़ी चलो मय-ए-इशरत के जाम छलकाती
तुम्हारी सेज तुम्हारे बदन के फूलों पर

इसी बहार का परतव है मैं नहीं तो क्या
मिरे लिए ये उदासी ये सोग क्यूँ आख़िर

मलीह चेहरे पे गर्द-ए-फ़सुर्दगी कैसी
बहार-ए-ग़ाज़ा से आरिज़ को ताज़गी बख़्शो

अलील आँखों में काजल लगाओ रंग भरो
सियाह जोड़े में कलियों की कहकशाँ गूंधो

हज़ार हाँपते सीने हज़ार काँपते लब
तुम्हारी चश्म तवज्जोह के मुंतज़िर हैं अभी

जिलौ में नग़मा-ओ-रंग-ओ-बहार-ओ-नूर लिए
हयात गर्म-ए-तग-ओ-दौ है मैं नहीं तो क्या