लटका दिया
दिन
खूँटी पर
हैंगर से उतारी
रात
पहनने के लिए
दिन और रात
हो गए कितने पुराने
अगले सफ़र के लिए
मुनासिब होगा
कौन सा
लिबास
नज़्म
लिबास
आदिल रज़ा मंसूरी
नज़्म
आदिल रज़ा मंसूरी
लटका दिया
दिन
खूँटी पर
हैंगर से उतारी
रात
पहनने के लिए
दिन और रात
हो गए कितने पुराने
अगले सफ़र के लिए
मुनासिब होगा
कौन सा
लिबास