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लिबास | शाही शायरी
libas

नज़्म

लिबास

आदिल रज़ा मंसूरी

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लटका दिया
दिन

खूँटी पर
हैंगर से उतारी

रात
पहनने के लिए

दिन और रात
हो गए कितने पुराने

अगले सफ़र के लिए
मुनासिब होगा

कौन सा
लिबास