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लैंडस्केप | शाही शायरी
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नज़्म

लैंडस्केप

गुलज़ार

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दूर सुनसान से साहिल के क़रीब
एक जवाँ पेड़ के पास

उम्र के दर्द लिए, वक़्त का मटियाला दुशाला ओढ़े
बूढ़ा सा पाम का इक पेड़, खड़ा है कब से

सैकड़ों सालों की तन्हाई के ब'अद
झुक के कहता है जवाँ पेड़ से ''यार!

सर्द सन्नाटा है!
तन्हाई है! कुछ बात करो!''