EN اردو
लकीरें | शाही शायरी
lakiren

नज़्म

लकीरें

फर्रुख यार

;

ऐ ताइर-ए-तमन्ना
इक दूसरे की ख़ातिर

कैसे रुके पड़े हैं
तू भी तिरी ज़बाँ भी

मैं भी मिरा क़लम भी
वामांदगी की लौ में

ये कौन सी ज़मीं है
जिस की नुमू से मेरी

साँसें रुकी हुई हैं
ये कौन सा फ़लक है

जिस की तहों में शब की
बेगानगी धरी है!