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लाओ हाथ अपना लाओ ज़रा | शाही शायरी
lao hath apna lao zara

नज़्म

लाओ हाथ अपना लाओ ज़रा

फ़हमीदा रियाज़

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लाओ हाथ अपना लाओ ज़रा
छू के मेरा बदन

अपने बच्चे के दिल का धड़कना सुनो
नाफ़ के उस तरफ़

उस की जुम्बिश को महसूस करते हो तुम
बस यहीं छोड़ दो

थोड़ी देर और उस हाथ को मेरे ठंडे बदन पर यहीं छोड़ दो
मेरे बे-कल नफ़स को क़रार आ गया

मेरे ईसा मिरे दर्द के चारागर
मेरा हर मू-ए-तन

उस हथेली से तस्कीन पाने लगा
उस हथेली के नीचे मिरा लाल करवट सी लेने लगा

उँगलियों से बदन उस का पहचान लो
तुम उसे जान लो

चूमने दो मुझे अपनी ये उँगलियाँ
उन की हर पोर को चूमने दो मुझे

नाख़ुनों को लबों से लगा लूँ ज़रा
फूल लाती हुई ये हरी उँगलियाँ

मेरी आँखों से आँसू उबलते हुए
उन से सींचूँगी में

फूल लाती हुई उँगलियों की जड़ें चूमने दो मुझे
अपने बाल अपने माथे का चाँद अपने लब

ये चमकती हुई काली आँखें
मिरे काँपते होंट मेरी छलकती हुई आँख को देख कर कितनी हैरान हैं

तुम को मा'लूम क्या तुम को मा'लूम क्या
तुम ने जाने मुझे क्या से क्या कर दिया

मेरे अंदर अँधेरे का आसेब था
या कराँ ता कराँ एक अनमिट ख़ला

यूँही फिरती थी मैं
ज़ीस्त के ज़ाइक़े को तरसती हुई

दिल में आँसू भरे सब पे हँसती हुई
तुम ने अंदर मिरा इस तरह भर दिया

फूटती है मिरे जिस्म से रौशनी
सब मुक़द्दस किताबें जो नाज़िल हुईं

सब पयम्बर जो अब तक उतारे गए
सब फ़रिश्ते कि हैं बादलों से परे

रंग संगीत सर फूल कलियाँ शजर
सुब्ह-दम पेड़ की झूमती डालियाँ

उन के मफ़्हूम जो भी बताए गए
ख़ाक पर बसने वाले बशर को मसर्रत के जितने भी नग़्मे सुनाए गए

सब ऋषी सब मुनी अंबिया औलिया
ख़ैर के देवता हुस्न नेकी ख़ुदा

आज सब पर मुझे
ए'तिबार आ गया ए'तिबार आ गया