अगर तुम किसी दिन कुछ बन जाओ
यानी तुम एक हर्फ़ बन जाओ
जो अब तक किसी हुरूफ़-ए-तहज्जी का हिस्सा न हो
तू जदलियाती माद्दियत के मुताबिक़ क्या होगी तुम्हारी
हैसियत
क्या कहेंगे तुम्हारे बारे में अहल शरीअत
किस मक़ाम पर रखेंगे तुम्हें अहल-ए-तरीक़त?
कौन सी जम्हूरियत तुम्हें क़ुबूल करेगी
क्या सुलूक करेंगे तुम्हारे साथ माहेरीन
लिसानियात?
कैसे तय किया जाएगा तुम्हारे लिए कोई नाम?
कैसे मुक़र्रर की जाएगी आवाज़?
क्या करेंगे जदीदिए- और मा-ब'अद-अल-जदीदयए?
ज़रूर तुम्हारा रिश्ता कराने को कोशिश की जाएगी
और इस से पहले
तय की जाएगी तुम्हारी जिंस
लेकिन कैसे तय की जाएगी तुम्हारी जिंस
क्या क़ुबूल कर सकेगा तुम्हें कोई लफ़्ज़?
क़ुबूल भी कर लिया
किसी मतरूक या ना-क़ाबिल-इस्तिमाल ने
तो क्या करेगी ग्रामर
क्या बनेगा ग्रामर की किताबों का?
ज़रूर तुम्हें जिला वतन कर दिया जाएगा
ज़रूर किसी दिन सब इकट्ठे होंगे
और क़त्ल कर देगा तुम्हें
इजतिमाई मफ़ाद या क़ौमी सलामती के पेश-ए-नज़र
संगसार कर देगा
ना-जाएज़ और ना-तहक़ीक़ होने के जुर्म में
और शायद तुम भी यही समझोगे
ऐसे होने से तो बेहतर है
न होना
नज़्म
क्या होना मुमकिन है
अनवर सेन रॉय