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कुल्लो-मन-अलैहा-फ़ान | शाही शायरी
kullo-man-alaiha-fan

नज़्म

कुल्लो-मन-अलैहा-फ़ान

असग़र मेहदी होश

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कितने शादाब फूलों में बस इक हमीं
बाद-ए-सरसर के झोंकों से मुरझा गए

और अब
जल्द ही

शाख़ से टूट कर
सख़्त बे-रहम मिट्टी पे गिर जाएँगे

चंद लम्हों में यकसर बिखर जाएँगे
लेकिन ऐसा नहीं

सारे फूलों का शायद यही हश्र है