कितने शादाब फूलों में बस इक हमीं
बाद-ए-सरसर के झोंकों से मुरझा गए
और अब
जल्द ही
शाख़ से टूट कर
सख़्त बे-रहम मिट्टी पे गिर जाएँगे
चंद लम्हों में यकसर बिखर जाएँगे
लेकिन ऐसा नहीं
सारे फूलों का शायद यही हश्र है
नज़्म
कुल्लो-मन-अलैहा-फ़ान
असग़र मेहदी होश