मथुरा कि नगर है आशिक़ी का
दम भरती है आरज़ू इसी का
हर ज़र्रा-ए-सर-ज़मीन-ए-गोकुल
दारा है जमाल-ए-दिलबरी का
बरसाना-ओ-नंद-गाँव में भी
देख आए हैं जल्वा हम किसी का
पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ था
हर नग़्मा-ए-कृष्ण बाँसुरी का
वो नूर सियाह या कि हसरत
सर-चश्मा फ़रोग़-ए-आगही का
नज़्म
कृष्ण
हसरत मोहानी