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कोई दिल की चाहत से मजबूर है | शाही शायरी
koi dil ki chahat se majbur hai

नज़्म

कोई दिल की चाहत से मजबूर है

साहिर लुधियानवी

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कोई दिल की चाहत से मजबूर है
जो भी है वो ज़रूरत से मजबूर है

कोई माने न माने मगर जान-ए-मन
कुछ तुम्हें चाहिए कुछ हमें चाहिए

छुप के तकते हो क्यूँ सामने आओ जी
हम तुम्हारे हैं हम से न शरमाओ जी

ये न समझो कि हम को ख़बर कुछ नहीं
सब उधर ही उधर है इधर कुछ नहीं

तुम भी बेचैन हो हम भी बेताब हैं
जब से आँखें मिलीं दोनों बे-ख़्वाब हैं

इश्क़ और मुश्क छुपते नहीं हैं कभी
इस हक़ीक़त से वाक़िफ़ हैं हम तुम सभी

अपने दिल की लगी को छुपाते हो क्यूँ
ये मोहब्बत की घड़ियाँ गँवाते हो क्यूँ

प्यास बुझती नहीं है नज़ारे बिना
उम्र कटती नहीं है सहारे बिना

कोई माने न माने मगर जान-ए-मन
कुछ तुम्हें चाहिए कुछ हमें चाहिए