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किताबी कीड़े | शाही शायरी
kitabi kiDe

नज़्म

किताबी कीड़े

ज़ीशान साहिल

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एक नज़्म से
दूसरी नज़्म तक जाने में

वो ज़ियादा वक़्त नहीं लेते
अगर कहीं लिखा हुआ हो

दरिया
और उस के बअ'द कोई पुल न हो

तब इन्हें कोई नहीं रोक सकता
वो बहुत तेज़ तेज़ चलते हुए

सदा बहार फूलों के नामों से
ख़िज़ाँ में गिरने वाले

आख़िरी पते तक जा पहुँचते हैं
अगर हमारी नज़्मों का शाइर

किसी कहानी में
अपनी महबूबा से आख़िरी बार मिल रहा हो

या किसी ड्रामे में उसे पहली दफ़अ' देख रहा हो
उन्हें ज़ियादा देर नहीं लगती

मोहब्बत को ख़त्म करते हुए
स्टेज को दीमक लगाते हुए