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कीड़े | शाही शायरी
kiDe

नज़्म

कीड़े

अहसन अली ख़ाँ

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मिरे कपड़ों को कीड़े खा गए तो मैं ने ये सोचा
मिरे नंगे बदन का भी यही अंजाम होना है

मगर ये जान कर मैं कितना ख़ुश हूँ कितना आसूदा
कि मेरी रूह मेरा ज़ेहन

और इफ़क़ार-ओ-एहसासात हैं
महफ़ूज़ कीड़ों से

मुझे उन का ख़याल आता है
जिन की रूह को और ज़ेहन को

चाटा है कीड़ों ने
छुपाना चाहते हैं जो लिबास-ए-फ़ाख़िरा में अन-गिनत कीड़े

दबाना चाहते हैं इत्र की ख़ुश्बू से जो बातिन की बदबू में
जिन्हें कीड़ों ने कीड़ा कर दिया है

लेकिन
नज़र आते हैं जो अब भी हमें इंसान की सूरत

कि हैं कुछ और दिन
उन के लिबास उन के बदन

महफ़ूज़ कीड़ों से
वो दिन नज़दीक है जब उन पर ज़हरीली दवा छिड़केंगे

नस्ल-ए-नौ के दानिश-वर