EN اردو
ख़्वाब देखना | शाही शायरी
KHwab dekhna

नज़्म

ख़्वाब देखना

सूरज नारायण मेहर

;

है जहान-ए-गुज़राँ ख़्वाब का बिल्कुल नक़्शा
दीदा-ए-हज़रत-ए-इंसाँ के लिए धोका सा

शादमानी का तबस्सुम है कि आँसू ग़म का
ये भी झूटा है जो मेरी सुनो वो भी झूटा

याँ है जो चीज़ वो सच्ची नहीं जुज़ नाम-ए-ख़ुदा
नाम-ओ-शोहरत के ये चुम्कारे भी बिल्कुल झूटे

मिस्ल-ए-नैरंग-ए-शफ़क़ हम ने बदलते देखे
इश्क़-ओ-उम्मीद है क्या हुस्न समझते हो किसे

ये वो हैं फूल चुने जाएँ जो क़ब्रों के लिए
याँ है जो नूर वो क़ाएम नहीं जुज़ ज़ात-ए-ख़ुदा

बहर-ए-तूफ़ानी-ए-दुनिया में हैं हम सर-गश्ता
मौज-ए-ग़म में है जहाज़ अपना थिएटर खाता

रौशनी अक़्ल की है वहम का या चुमकारा
इन से तूफ़ाँ के सिवा हम ने न कुछ भी देखा

याँ है जो शय भी वो मस्कन नहीं जुज़ नाम-ए-ख़ुदा