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ख़ुदी का राज़ | शाही शायरी
KHudi ka raaz

नज़्म

ख़ुदी का राज़

नील अहमद

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मेरी हर फ़िक्र में तूफ़ान की तुग़्यानी है
और मिरे शौक़ में जज़्बों की फ़रावानी है

यूँ जुनूँ बहता है दरिया की रवानी जैसे
और मिरी सोच में पलती है कहानी जैसे

मैं ने तो हिम्मत-ए-मर्दान-ए-ख़ुदा सीखी है
मैं ने टूटे हुए लहजों की दुआ सीखी है

मैं ने हर रंग की ख़ुशबू की अदा सीखी है
मैं ने हर ज़ाहिर ओ बातिल का उठाया पर्दा

और तस्ख़ीर-ए-ज़माना की लगन दिल में लिए
अपने हाथों में मशक़्क़त के कड़े पहने हैं

मैं ने हर अक़्ल-ओ-ख़िरद फ़हम-ओ-फ़रासत का सहारा ले कर
यूँ ज़माने को बरतने के हुनर सीखे हैं

मैं ने जाने हैं सभी राज़-ए-निहाँ और जहाँ
और जाना है ख़ुदी है तो मकाँ मेरा है

आसमाँ मेरा
ज़मीं मेरी

जहाँ मेरा है