रात भीगे तो पुराने क़िस्से
पए तरतीब कोई और सहारा ढूँडें
चाँदनी नींद का फैला हुआ जादू ले कर
दिल के बे-ख़्वाब नगर में उतरे
और हवा धूप से बौलाई हुई सड़कों पर
लोरियाँ गाती निकले
ओस हर फूल के दामन में सितारे भर दे
लेकिन इस ख़्वाब-ए-ख़याली का नतीजा क्या है
रात की गोद मिरे दर्द की मंज़िल तो नहीं
दामन-ए-गुल पे चमकती शबनम
लोरियाँ देती हुई सर्द हवा
चाँदी की नर्म सुनहरी किरनें
सब के सीनों में उतर जाएँगी
कल के सूरज की झुलसती किरनें
दर्द फिर ख़ाक-ब-सर आएगा
ख़्वाब की आँख में सिमटा हुआ सारा काजल
ख़ुद उसी ख़्वाब के चेहरे पे बिखर जाएगा
दिल के क़िस्सों का मुक़द्दर है परेशाँ-हाली
पए तरतीब सहारों का तआक़ुब छोड़ो
सोच के बख़्त में इज़हार का लम्हा कब था
दिल-ए-नाकाम सराबों का तआक़ुब छोड़ो
सुब्ह-दम फिर वही पुतली का तमाशा होगा
जागती रात के ख़्वाबों का तआक़ुब छोड़ो
नज़्म
ख़ुद-सुपुर्दगी
अमजद इस्लाम अमजद