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ख़ुद-कुशी करने का अगला मंसूबा | शाही शायरी
KHud-kushi karne ka agla mansuba

नज़्म

ख़ुद-कुशी करने का अगला मंसूबा

सिदरा सहर इमरान

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तय हुई थी एक मुलाक़ात रेलवे-ट्रैक पर
लेकिन रेल-गाड़ी का इंजन मुसलसल खँसता रहा

प्लेटफार्म नंबर आख़िरी पर
और फँस गए मुसाफ़िर एक दूसरे की गालियों में

सो यक-तरफ़ा रही मुलाक़ात
खिड़की से बाहर पुकार रहा था आसमान

मगर चिटख़िनी और फ़्रेम ने जकड़ लिया
एक दूसरे का हाथ

और हब्स बढ़ता गया
लोगों की आमद-ओ-रफ़्त के साथ

चूल्हे से देर तक आती रहीं
धुनकी हुई आवाज़ें

और रंगीन चेहरे वाली न्यूज़-कास्टर ने
दोहराई वही बासी ख़बर

कि सर्दी की शिद्दत के बाइ'स
महँगी हो गई है आग

इस लिए परहेज़ किया जाए औरतें जलाने से
पुल पर इज़्दिहाम था ट्रैफ़िक का

लेकिन किसी हादसे को दिखाई नहीं दी
हमारी सूरत

और हम नीचे उतर आए चोर दरवाज़े से
दरिया को ख़ाली देख कर

अपनी मीआ'द पूरी कर चुकी थीं
नींद की तमाम दवाएँ

इस लिए ज़ब्त कर ली गईं
और ख़ाली स्टोर्ज़ में तालियाँ पीटती रहीं

सर-दर्द की बे-असर गोलियाँ
मुमकिन है फिर से मुंतज़िर हो इज़राईल

रेलवे-ट्रैक पर
लेकिन हम सस्ती किताबों के अम्बार से

तलाश कर चुके हैं
मौत के मंज़र के बा'द

लिखे जाने वाला क़ीमती नुस्ख़ा