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खोखले बर्तन के होंट | शाही शायरी
khokhle bartan ke honT

नज़्म

खोखले बर्तन के होंट

असलम इमादी

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खोखले बर्तन के होंट
सदा के खोखले बुत पर

वो अपनी उँगलियाँ घिसते रहेंगे
अंधेरे नर्ख़रे से

बस हवा की रफ़्त ओ आमद का निशाँ
मालूम होता है

ज़बाँ पर सब्ज़ धब्बे पड़ते जाएँगे
चमकते सब्ज़ धब्बों में ठिठुरते आईने नीली दुआओं के

कोई ये उन से कह दो
कि आवाज़ें खड़कने के सिवा या

धड़धड़ाने शोर उठने के सिवा
ताज़ा नहीं होतीं

सदा का देवता
अपने परिंदे ले के वापस जा चुका है