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खेल | शाही शायरी
khel

नज़्म

खेल

सलीम अहमद

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शाम को दफ़्तर के ब'अद
वापसी पर घर की सम्त

मैं ने देखा मेरे बच्चे
खेल में मसरूफ़ हैं

इतने संजीदा कि जैसे खेल ही हो ज़िंदगी
खेल ही में सारे ग़म हों खेल ही सारी ख़ुशी

ऐ ख़ुदा!
मेरे फ़न में दे मुझे

तू मेरे बच्चों की तरह
खेल की संजीदगी