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ख़बर का रुख़ | शाही शायरी
KHabar ka ruKH

नज़्म

ख़बर का रुख़

इमरान शमशाद

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टीवी पर इक ख़बर चली है
शहर की जानिब

बढ़ने वाले सैलाबी रेले का रुख़
गाँव की जानिब मोड़ दिया है

गाँव में बैठे इक देहाती ने ग़ुस्से में
अपना टीवी तोड़ दिया है