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ख़ार चुनते हुए | शाही शायरी
Khaar chunte hue

नज़्म

ख़ार चुनते हुए

तनवीर अंजुम

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मैं ने अपनी ज़िंदगी
ख़्वाब देखने लड़ने और ख़ार चुनने में ज़ाएअ' की

मुझे अफ़्सोस है
ख़्वाब मुझे ख़ुश करते रहे

और मोहब्बत के लम्हों को मुल्तवी करते रहे
बहुत मा'मूली बातों के लिए

मुझे ज़लील किया गया
और मेरे तख़य्युल ने

मुझे उन लोगों से तवील जंगों में ज़ाएअ' किया
जिन्हें चंद लफ़्ज़ों से शिकस्त की जा सकती थी

मेरी इबादत-गाह को किसी घर से आग नहीं मिली
मुझे आतिश-दान को रौशन रखने का तरीक़ा जानने के लिए

अपने दिल को जलाना पड़ा
और इतनी दूर तक जाना पड़ा

कि इबादत-गाह को वापस आना बे-मा'नी ठहरा
किसी ने मुझे कोई तरीक़ा नहीं बताया

मेरी बद-क़िस्मती से पहले
कोई इस राह पर नहीं आया

जहाँ आज़ाद हवाएँ मेरे लिए काँटे उगाती रहीं
और मेरी ज़िद तुम्हारे लिए रास्ते आसान करती रही

मुझे अफ़्सोस है
मेरी ज़ख़्मी उँगलियाँ जब तक तुम्हारे लिए

फूलों का हार बना पाएँगी
फूल मुरझा चुके होंगे

और तुम बहुत से तहाइफ़ ले कर
अपनी कामयाब मोहब्बत का जश्न मनाने जा चुके होगे