घोर-अँधेरे सहराओं में
जब मैं भटका
इक टीले पर चढ़ कर चीख़ा
ख़ुदा-या!!
इक सकते के ब'अद जवाबन
सत्तर बार
अपनी ही आवाज़ सुनाई दी मुझ को
नज़्म
कश्फ़
अली अकबर अब्बास
नज़्म
अली अकबर अब्बास
घोर-अँधेरे सहराओं में
जब मैं भटका
इक टीले पर चढ़ कर चीख़ा
ख़ुदा-या!!
इक सकते के ब'अद जवाबन
सत्तर बार
अपनी ही आवाज़ सुनाई दी मुझ को