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कश्फ़ | शाही शायरी
kashf

नज़्म

कश्फ़

अली अकबर अब्बास

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घोर-अँधेरे सहराओं में
जब मैं भटका

इक टीले पर चढ़ कर चीख़ा
ख़ुदा-या!!

इक सकते के ब'अद जवाबन
सत्तर बार

अपनी ही आवाज़ सुनाई दी मुझ को