लबों पे अल्फ़ाज़ हैं कि प्यासों का क़ाफ़िला है
नमी है ये या फ़ुरात आँखों से बह रही है
हयात आँखों से बह रही है
सिपाह-ए-फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर यलग़ार कर रही है
दिलों को मिस्मार कर रही है
लहू लहू हैं हमारी सोचें
बरहना-सर है हया तमन्नाएँ बाल नोचें
वफ़ा के बाज़ू कटे हुए हैं
हलाकतों के ग़ुबार से ज़िंदगी के मैदाँ पटे हुए हैं
धुआँ हर इक ख़ेमा-ए-सदा से निकल रहा है
हर एक अंदर से जल रहा है
रिया के नेज़ों पे आज सच्चाइयों के सर हैं
यज़ीदियत के उसूल अपने उरूज पर हैं
बड़ी ही ज़ालिम है हक़-पसंदी को चैन लेने न दे ये दुनिया
हमें तो कूफ़ा लगे ये दुनिया
क़दम क़दम आज़माइशों की फ़ज़ा मिली है
हमें तो हर दौर में नई कर्बला मिली है
नज़्म
कर्बला
मुज़फ़्फ़र वारसी