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कराची | शाही शायरी
karachi

नज़्म

कराची

अंजुम आज़मी

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इक हुजूम-ए-बे-कराँ
शहर की सड़कों पे गलियों में रवाँ

दिन के हंगामों को रखता है जवाँ
एक जानिब सिलसिला-हा-ए-इमारात-ए-बुलंद

जिन के मीनारे फ़लक से मिल गए हैं जा-ब-जा
शहर की सतवत के अज़्मत के निशाँ

दूसरी जानिब है बोसीदा मकानों की क़तार
मुद्दतों से गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार

है उस आबादी में जिन की नौहा-ख़्वाँ
ऐ कराची ऐ निगार-ए-जाँ-सिताँ

गो तिरे रुख़ पर खुली है चाँदनी
तेरी गलियों में अँधेरी रात है