इक हुजूम-ए-बे-कराँ
शहर की सड़कों पे गलियों में रवाँ
दिन के हंगामों को रखता है जवाँ
एक जानिब सिलसिला-हा-ए-इमारात-ए-बुलंद
जिन के मीनारे फ़लक से मिल गए हैं जा-ब-जा
शहर की सतवत के अज़्मत के निशाँ
दूसरी जानिब है बोसीदा मकानों की क़तार
मुद्दतों से गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार
है उस आबादी में जिन की नौहा-ख़्वाँ
ऐ कराची ऐ निगार-ए-जाँ-सिताँ
गो तिरे रुख़ पर खुली है चाँदनी
तेरी गलियों में अँधेरी रात है
नज़्म
कराची
अंजुम आज़मी