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कहानी | शाही शायरी
kahani

नज़्म

कहानी

मुस्तफ़ा ज़ैदी

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बच्चो, हम पर हँसने वालो, आओ, तुम्हें समझाएँ
जिस के लिए इस हाल को पहुँचे, उस का नाम बताएँ

रूप-नगर की इक रानी थी, उस से हुआ लगाव
बच्चो, उस रानी की कहानी सुन लो और सो जाओ

उस पर मरना, आहें भरना, रोना, कुढ़ना, जलना
आब-ओ-हवा पर ज़िंदा रहना, अँगारों पर चलना

हम जंगल जंगल फिरते थे उस के लिए दीवाने
ऋषी बने, मजनूँ कहलाए, लेकिन हार न माने

बरसों क्या क्या चने चबाए, क्या क्या पापड़ बेले
लहरों को हमराज़ बनाया, तूफ़ानों से खेले

दफ़्तर भूले, बिस्तर भूले, पीने लगे सराब
पल भर आँख लगे, तो आएँ उल्टे सीधे ख़्वाब

नींद में क्या क्या देखें, तड़पें, रोएँ, उठ उठ जाएँ
सो जाने की गोली खाएँ, इंजेक्शन लगवाएँ

आख़िर वो इक ख़्वाब में आई सुन के हमारा हाल
कोयल जैसी बात थी उस की, हिरनी जैसी चाल

कहने लगी, कोई जी, तेरा हाल न देखा जाए
मैं ने कहा कि रानी अपनी प्रजा को बहलाए

कहने लगी कि तू क्या लेगा: सोना, चाँदी, हार
मैं ने कहा कि रानी, तेरे मुखड़े की तलवार

फिर दिल के आँगन में उतरा उस का सारा रूप
उस चेहरे की शीतल किरनें, उस मुखड़े की धूप

धूप पड़ी, तो खुल गई आँखें, खुल गया सारा भेद
ग़श खाया, तो दौड़े आए मुंशी, पंडित, वेद

वो दिन है और आज का दिन है छुट गया खाना पानी
छुट गया खाना पानी, बच्चो, हो गई ख़त्म कहानी

मेरी कहानी में लेकिन इक भेद है, उस को पाओ
चाँद को दूर ही दूर से देखो चाँद के पास न जाओ

न अपने घर ही उस को बुलाओ