कहाँ गए वो
वतन की इस्मत बचाने वाले
वक़ार-ओ-अज़मत बढ़ाने वाले
वफ़ा का परचम उठाने वाले उन्हें बुलाओ हम उन की आँखों से आज अपने वतन को देखें
कहाँ गए वो
जो दास्तान-ए-वफ़ा को अपने लहू से तहरीर कर रहे थे
जो अपनी आँखों की क़ीमतों पर भी ख़्वाब ता'बीर कर रहे थे
जो रौशनी के सफ़ीर बन कर दिलों में तनवीर कर रहे थे
वफ़ा में ज़ंजीर हो रहे थे जफ़ा को ज़ंजीर कर रहे थे
कहाँ गए वो क़ज़ा को तस्ख़ीर करने वाले उन्हें बुलाओ हम उन की आँखों से आज अपने वतन को देखें
कहाँ गए वो
ख़िज़ाँ को शादाब करने वाले
लहू को सैलाब करने वाले
सितम को ग़र्क़ाब करने वाले
कहाँ गए वो वतन को आज़ाद करने वाले उन्हें बुलाओ हम उन की आँखों से आज अपने वतन को देखें
कहाँ गए वो
सहर का इम्कान करने वाले हरीफ़-ए-ज़ुल्मत
सरों को क़ुर्बान करने वाले अमीन-ए-जन्नत
वतन पे एहसान करने वाले नक़ीब-ए-हशमत
कहाँ हैं आख़िर
सितम की शमएँ बुझाने वाले
सलीब-ओ-मक़्तल सजाने वाले कभी न आएँगे जाने वाले
नज़्म
कभी न आएँगे जाने वाले
तारिक़ क़मर