तुम्हारा मैं हूँ मिरे तुम हो अच्छे जुमले हैं 
मगर ये बात बहुत दूर है सदाक़त से 
कहीं से तुम हो अधूरे कहीं से ख़ाली मैं 
तुम अपने तौर मुझे इस्तिमाल करते हो 
मैं अपने तौर तुम्हें इस्तिमाल करता हूँ 
ये ज़िंदगी है यहाँ घात में है हर कोई 
सब अपनी अपनी ज़रूरत में छुप के बैठे हैं 
कहीं नहीं है मोहब्बत फ़रेब है सब कुछ 
मगर ये झूटी मोहब्बत बहुत ज़रूरी है 
हवा में जैसे हरारत बहुत ज़रूरी है
        नज़्म
झूटी मोहब्बत
शकील आज़मी

