ऐ चराग़ों की लौ की तरह
झिलमिलाती हुई नींद, सुन
मेरा उधड़ा हुआ जिस्म बुन
ख़्वाब से जोड़
लहरों में ढाल
इक तसलसुल में ला
नक़्श मरबूत कर
नर्म, अबरेशमीं कैफ़ से
मेरी दर्ज़ों को भर
मेरी मिट्टी के ज़र्रे उठा
मेरी वहशत के बिखरे हुए
संग-रेज़ों को चुन
ऐ चराग़ों की लौ की तरह
झिलमिलाती हुई नींद, सुन
मेरा उधड़ा हुआ जिस्म बुन
कोई लोरी दे
झूला झुला
पोटली खोल रम्ज़ों की
मुझ पर कहानी की अब्रक छिड़क
मेरा कांधा थपक
आ मुझे ताज-ए-रोईदगी से सजा
इक तसलसुल में ला
शब के इक तार पर
छेड़ दे कोई धुन
ऐ चराग़ों की लौ की तरह
झिलमिलाती हुई नींद, सुन
मेरा उधड़ा हुआ जिस्म बुन!!
नज़्म
झिलमिलाती हुई नींद सुन
रफ़ीक़ संदेलवी