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जश्न का दिन | शाही शायरी
jashn ka din

नज़्म

जश्न का दिन

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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जुनूँ की याद मनाओ कि जश्न का दिन है
सलीब-ओ-दार सजाओ कि जश्न का दिन है

तरब की बज़्म है बदलो दिलों के पैराहन
जिगर के चाक सिलाओ कि जश्न का दिन है

तुनुक-मिज़ाज है साक़ी न रंग-ए-मय देखो
भरे जो शीशा चढ़ाओ कि जश्न का दिन है

तमीज़-ए-रहबर-ओ-रहज़न करो न आज के दिन
हर इक से हाथ मिलाओ कि जश्न का दिन है

है इंतिज़ार-ए-मलामत में नासेहों का हुजूम
नज़र सँभाल के जाओ कि जश्न का दिन है

वो शोरिश-ए-ग़म-ए-दिल जिस के लय नहीं कोई
ग़ज़ल की धन में सुनाओ कि जश्न का दिन है