आग जंगल में लगी थी लेकिन
बस्तियों में भी धुआँ जा पहुँचा
एक उड़ती हुई चिंगारी का
साया फैला तो कहाँ जा पहुँचा
तंग गलियों में उमड़ते हुए लोग
गो बचा लाए हैं जानें अपनी
अपने सर पर हैं जनाज़े अपने
अपने हाथों में ज़बानें अपनी
आग जब तक न बुझे जंगल की
बस्तियों तक कोई जाता ही नहीं
हुस्न-ए-अश्जार के मत्वालों को
हुस्न-ए-इंसाँ नज़र आता ही नहीं
नज़्म
जंगल की आग
अहमद नदीम क़ासमी