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जब तेरी समुंदर आँखों में | शाही शायरी
jab teri samundar aankhon mein

नज़्म

जब तेरी समुंदर आँखों में

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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ये धूप किनारा शाम ढले
मिलते हैं दोनों वक़्त जहाँ

जो रात न दिन जो आज न कल
पल-भर को अमर पल भर में धुआँ

इस धूप किनारे पल-दो-पल
होंटों की लपक

बाँहों की छनक
ये मेल हमारा झूट न सच

क्यूँ रार करो क्यूँ दोश धरो
किस कारन झूटी बात करो

जब तेरी समुंदर आँखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा

सुख सोएँगे घर दर वाले
और राही अपनी रह लेगा