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इश्तिराक | शाही शायरी
ishtirak

नज़्म

इश्तिराक

मज़हर इमाम

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ख़ैर अच्छा हो तुम भी मेरे क़बीले में आ ही गए
इस क़बीले में कोई किसी का नहीं

एक ग़म के सिवा
चेहरा उतरा हुआ

बाल बिखरे हुए
नींद उचटती हुई

ख़ैर अच्छा हुआ तुम भी मेरे क़बीले में आ ही गए
आओ हम लोग जीने की कोशिश करें