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इशारे | शाही शायरी
ishaare

नज़्म

इशारे

मुनीर नियाज़ी

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शहर के मकानों के
सर्द साएबानों के

दिलरुबा थके साए
ख़्वाहिशों से घबराए

रह-रवों से कहते हैं
रात कितनी वीराँ है

मौत बाल-अफ़्शाँ है
इस घने अंधेरे में

ख़्वाहिशों के डेरे में
दिल के चोर बस्ते हैं

उन के पास जाने के
लाख चोर रस्ते हैं