फिर आज यास की तारीकियों में डूब गई!
वो इक नवा जो सितारों को चूम सकती थी
सुकूत-ए-शब के तसलसुल में खो गई चुप-चाप
जो याद वक़्त के मेहवर पे घूम सकती थी
अभी अभी मिरी तन्हाइयों ने मुझ से कहा
कोई सँभाल ले मुझ को, कोई कहे मुझ से
अभी अभी कि मैं यूँ ढूँढता था राह-ए-फ़रार
पता चला कि मिरे अश्क छिन गए मुझ से

नज़्म
इंतिहा
मुस्तफ़ा ज़ैदी