आ रहा है इक सितारा आसमाँ से टूट कर
दौड़ता अपने जुनूँ की राह पर दीवाना-वार
अपने दिल के शोला-ए-सोज़ाँ में ख़ुद जलता हुआ
मुंतशिर करता हुआ दामान-ए-ज़ुल्मत में शरार
अपनी तन्हाई पे ख़ुद ही नाज़ फ़रमाता हुआ
शौक़ पर करता हुआ आईन-ए-फ़ितरत को निसार
किस क़दर बेबाक कितना तेज़ कितना गर्म-रौ
जिस से सय्यारों की आसूदा-ख़िरामी शर्मसार
मौजा-ए-दरिया इशारों से बुलाती है क़रीब
अपनी संगीन गोद फैलाए हुए है कोहसार
है हवा बेचैन आँचल में छुपाने के लिए
बढ़ रहा है कुर्रा-ए-गीती का शौक़-ए-इंतिज़ार
लेकिन ऐसा अंजुम-ए-रौशन-जबीन ओ ताबनाक
ख़ुद ही हो जाता है अपनी ताबनाकी का शिकार

नज़्म
इन्फ़िरादियत
अली सरदार जाफ़री