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इक बेवफ़ा के नाम | शाही शायरी
ek bewafa ke nam

नज़्म

इक बेवफ़ा के नाम

ओवेस अहमद दौराँ

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तेरे भी दिल में हूक सी उठ्ठे ख़ुदा करे
तू भी हमारी याद में तड़पे ख़ुदा करे

मजरूह हो बला से तिरे हुस्न का ग़ुरूर
पर तुझ को चश्म-ए-शौक़ न देखे ख़ुदा करे

खो जाएँ तेरे हुस्न की रानाइयाँ तमाम
तेरी अदा किसी को न भाए ख़ुदा करे

मेरी ही तरह कश्ती-ए-दिल हो तिरी तबाह
तूफ़ान इतने ज़ोर का उठ्ठे ख़ुदा करे

राहों के पेच-ओ-ख़म में रहे ता-हयात गुम
मंज़िल तिरे क़रीब न आए ख़ुदा करे

ज़ुल्मत हो तू हो और तिरी रहगुज़ार हो
दुनिया में तेरी सुब्ह न फूटे ख़ुदा करे

तुझ पर नशात-ओ-ऐश की रातें हराम हों
मर जाएँ तेरे साज़ के नग़्मे ख़ुदा करे

आएँ न तेरे बाग़ में झोंके नसीम के
तेरा गुल-ए-शबाब न महके ख़ुदा करे

हर लम्हा तेरी रूह को इक बे-कली सी हो
और बे-कली में नींद न आए ख़ुदा करे

हो तेरे दिल में मेरी ख़लिश मेरी आरज़ू
मेरे बग़ैर चैन न आए ख़ुदा करे

तू जा रही है बज़्म-ए-तरब में तो ख़ैर जा
पर तेरा जी वहाँ भी न बहले ख़ुदा करे

अल-मुख़्तसर हों जितने सितम तुझ पे टूट जाएँ
लेकिन ये रब्त-ए-ज़ीस्त न टूटे ख़ुदा करे

जो कुछ मैं कह गया हूँ जुनूँ में वो सब ग़लत
तुझ पर कोई भी आँच न आए ख़ुदा करे

तू है मता-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र बेवफ़ा सही
है रौशनी-ए-दाग़-ए-जिगर बेवफ़ा सही