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ईद मिलन | शाही शायरी
id milan

नज़्म

ईद मिलन

नज़ीर बनारसी

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बिछड़े हुओं को बिछड़े हुओं से मिलाए है
हर सम्त ईद जश्न-ए-मोहब्बत मनाए है

इंसानियत की पेंग मोहब्बत बढ़ाए है
मौसम हर इक उमीद को झूला झुलाए है

बारिश में खेत ऐसी तरह से नहाए है
रौनक़ हर इक किसान के चेहरे पे आए है

हम सब को अपने घेरे में लेने के वास्ते
चारों तरफ़ से घिर के घटा आज आए है

हैवानियत ने ख़ून के धब्बे जनम दिए
बरसात आ के ख़ून के धब्बे छुड़ाए है

शहज़ादी-ए-बहार की आमद है बाग़ में
हर एक फूल राह में आँखें बिछाए है

है कितनी प्यारी प्यार भरी ईद की अदा
अपना समझ के सब को गले से लगाए है

सच पूछिए तो ये भी मोहब्बत का है सुबूत
जो राय आप की है वही मेरी राय है

बौछारें आ के देती हैं उस को सलामियाँ
बंसी बजा बजा के जो मेला लगाए है

मैं जाऊँगा तो फिर कभी वापस न आऊँगा
काली घटा तो हर बरस आए है जाए है

ईद-उल-फ़ितर की वज्ह-ए-शराफ़त तो देखिए
हर साल आ के सब को गले से लगाए है

दीजे दुआएँ ईद की त्यौहार को 'नज़ीर'
इक भीड़ आज आप से मिलने को आए है