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इधर भी आ | शाही शायरी
idhar bhi aa

नज़्म

इधर भी आ

असरार-उल-हक़ मजाज़

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ये जोहद-ओ-कश्मकश ये ख़रोश-ए-जहाँ भी देख
अदबार की, सरों पे घनी बदलियाँ भी देख

ये तोप ये तुफ़ंग ये तेग़ ओ सिनान भी देख
ओ कुश्ता-ए-निगार-ए-दिल-आरा इधर भी आ

आ, और बिगुल का नग़्मा-ए-''जाँ-आफ़रीं'' भी सुन
आ, बे-कसों का नाला-ए-अंदोह-गीं भी सुन

आ, बाग़ियों का ज़मज़मा-ए-आतिशीं भी सुन
ओ मस्त-ए-साज़-ओ-बरबत-ओ-नग़्मा इधर भी आ

तक़दीर कुछ हो, काविश-ए-तदबीर भी तो है
तख़रीब के लिबास में तामीर भी तो है

ज़ुल्मात के हिजाब में तनवीर भी तो है
आ मुंतज़िर है इशरत-ए-फ़र्दा इधर भी आ