गरज रहा है सियह मस्त पील पैकर-ए-अब्र
उदास कोह की चोटी पे एक तन्हा पेड़
उठा रहा है सू-ए-आसमाँ वो तन्हा शाख़
सरक रही है अभी जिस में ज़िंदगी की नमी
बढ़ा हो जैसे किसी बे-नवा का बेकस हाथ
हुजूम-ए-यास में इक आख़िरी दुआ के लिए
बरस मुहीत-ए-करम एक बार और बरस
बस एक बार मुझे और फूल लाने दे
तड़प रहा है अभी मुझ में साज़-ओ-बर्ग-ए-नुमू
ये मेरी कलियाँ ये पत्ते अभी तो ज़िंदगी हूँ
उतर उतर मिरे दामन पे फूल बरसा दे
मचल के अब्र के पर्दों से बे-हिजाब आया
दुआ-ए-नीम-शबी का मगर जवाब आया
शरार-ए-बर्क़ का हैजान
पेड़ तौर ब-दस्त
ज़-फ़र्क़ ता ब-क़दम एक फूल
हुस्न-ए-क़ुबूल
नज़्म
हुस्न-ए-क़ुबूल
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद