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हिन्दोस्तान में उर्दू | शाही शायरी
hindostan mein urdu

नज़्म

हिन्दोस्तान में उर्दू

मुनीबुर्रहमान

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दिन-दहाड़े लफ़्ज़ को बाज़ार में
क़त्ल कर डाला गया

ये ख़बर तुम ने सुनी
ये ख़बर मैं ने सुनी

और सुन कर चुप रहे
मरने वाले का कोई वारिस न था

इस लिए हुक्काम ने मक़्तूल की बे-नाम लाश
मुर्दा-घर को भेज दी

फिर ख़ुदा मा'लूम उस का क्या हुआ
एक दिन कुछ सर-फिरे

ढूँढने निकले लुग़त के मक़बरे
तो अचानक उन को ये कतबा मिला

सब से पहले लफ़्ज़ था