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हिजरत | शाही शायरी
hijrat

नज़्म

हिजरत

रियाज़ लतीफ़

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न पूछ मुझ से
कि जंग, लश्कर,

सिसकते पत्थर,
फ़ज़ा के आँसू

हवा के तेवर
ये राएगानी

बिखरते मेहवर
ये सारे क्यूँ कर?

कि रफ़्ता रफ़्ता,
मैं सख़्त जानी की डालियों से लचक पड़ा हूँ

गुज़र चुका हूँ मैं हर कहानी की हद से बाहर
पड़ा हुआ हूँ मैं अपने मआनी की हद के बाहर!!