ज़रूरी काग़ज़ों की फ़ाइलों से
बे-ज़रूरी
काग़ज़ों को
छाँटा जाता है
कभी कुछ फेंका जाता है
कभी कुछ बाँटा जाता है
कई बरसों के रिश्तों को
पलों में
काटा जाता है
वो शीशा हो
कि पत्थर हो
बिना दुम का वो बंदर हो
निशानों से भरा
या कोई बोसीदा कैलेंडर हो
पुराने घर के ताक़ों में
मचानों में
वो सब!!
छोटा हुआ अपना
कभी बन कर कोई आँसू
कभी बन कर कोई सपना
अचानक
जगमगाता है
वो सब खोया हुआ
अपने न होने से सताता है
मकानों के बदलने से
नए ख़ानों में ढलने से
बहुत कुछ टूट जाता है
बहुत कुछ छूट जाता है
नज़्म
हिजरत
निदा फ़ाज़ली